Wednesday, September 7, 2011

तनहाईयाँ


बड़ा सा शहर, अनगिनत गलियाँ…
अंजाने रास्तें, यूँही बस चलियाँ…
ना था अंधेरा, ना थी परछाईयाँ…
एक था मैं, अनगिनत मेरी तनहाईयाँ…


बहुत से लोग, अनगिनत उनकी कहानियाँ…
दर्द-ए-दिल, पर मुस्कुराहट उनके ज़ुबानियाँ…
ना थी मंज़िल, ना थी परेशानियाँ…
एक था मैं, अनगिनत मेरी तनहाईयाँ…


वो गुज़रे पल, अनगिनत बदमाशियाँ…
बिछड़े यार, याद उनकी जो लाए हिचकियाँ…
ना रहा बचपाना, ना रही मासूमियाँ..
एक रहा मैं, अनगिनत मेरी सिसकियाँ…


मन में है, अनगिनत पहेलियाँ…
मैं हूँ कहाँ, कहाँ गयी वो मस्तियाँ…
ना था मैं दूर, ना थी नज़दीकियाँ…
एक था मैं, अनगिनत मेरी तनहाईयाँ…



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